Today birthday
19 जुलाई, 2015
Mangal Pandey
👉जन्म और परिवार:-
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के नगवा गाँव में हुआ था। कुछ सन्दर्भों में इनका जन्म स्थल फ़ैज़ाबाद ज़िले की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर ग्राम में बताया गया है।इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। वे कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में "34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री" की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे। भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी।
'भारतीय इतिहास' में 29 मार्च, 1857 का दिन अंग्रेजों के लिए दुर्भाग्य के दिन के रूप में उदित हुआ। पाँचवी कंपनी की चौंतीसवीं रेजीमेंट का 1446 नं. का सिपाही वीरवर मंगल पांडे अंग्रेज़ों के लिए प्रलय-सूर्य के समान निकला। बैरकपुर की संचलन भूमि में प्रलयवीर मंगल पांडे का रणघोष गूँज उठा-
"बंधुओ! उठो! उठो! तुम अब भी किस चिंता में निमग्न हो? उठो, तुम्हें अपने पावन धर्म की सौगंध! चलो, स्वातंत्र्य लक्ष्मी की पावन अर्चना हेतु इन अत्याचारी शत्रुओं पर तत्काल प्रहार करो।"
मंगल पांडे के बदले हुए तेवर देखकर अंग्रेज़ सारजेंट मेजर ह्यूसन उसने पथ को अवरुद्ध करने के लिए आगे बढ़ा। उसने उस विद्रोही को उसकी उद्दंडता का पुरस्कार देना चाहा। अपनी कड़कती आवाज़ में उसने मंगल पांडे को खड़ा रहने का आदेश दिया। वीर मंगल पांडे के अरमान मचल उठे। वह शिवशंकर की भाँति सन्नद्ध होकर रक्त गंगा का आह्वान करने लगा। उसकी सबल बाहुओं ने बंदूक तान ली। उसकी सधी हुई उँगलियों ने बंदूक का घोड़ा अपनी ओर खींचा और घुड़ड़ घूँsss का तीव्र स्वर घहरा उठा। मेजर ह्यसन घायल कबूतर की भाँति भूमि पर तड़प रहा था। उसका रक्त भारत की धूल चाट रहा था। 1857 के क्रांतिकारी ने एक फिरंगी की बलि ले ली थी। विप्लव महायज्ञ के पुरोधा मंगल पांडे की बंदूक पहला 'स्वारा' बोल चुकी थी। स्वातंत्र्य यज्ञ की वेदी को दस्यु-देह की समिधा अर्पित हो चुकी थी।
खबरदार, जो कोई आगे बढ़ा! आज हम तुम्हारे अपवित्र हाथों को ब्राह्मण की पवित्र देह का स्पर्श नहीं करने देंगे।
ह्यसन को धराशायी हुआ देख लेफ्टिनेंट बॉब वहाँ जा पहुँचा। उस अश्वारूढ़ गोरे ने मंगल पांडे को घेरना चाहा। पहला ग्रास खाकर मंगल पांडे की बंदूक की भूख भड़क उठी थी। उसने दूसरी बार मुँह खोला और लेफ्टिनेंट बॉब घोड़े सहित भू-लुंठित होता दिखाई दिया। गिरकर भी बॉब ने अपनी पिस्तौल मंगल पांडे की ओर सीधी करके गोली चला दी। विद्युत गति से वीर मंगल पांडे गोली का वार बचा गये और बॉब खिसियाकर रह गया। अपनी पिस्तौल को मुँह की खाती हुई देख बॉब ने अपनी तलवार खींच ली और वह मंगल पांडे पर टूट पड़ा। मंगल पांडे भी कच्चे खिलाड़ी नहीं थे। बॉब ने मंगल पांडे पर प्रहार करने के लिए तलवार तानी ही थी कि मंगल पांडे की तलवार का भरपूर हाथ उस पर ऐसा पड़ा कि बॉब का कंधा और तलवार वाला हाथ जड़ से कटकर अलग जा गिरा। एक बलि मंगल पांडे की बंदूक ले चुकी थी और दूसरी उसकी तलवार ने ले ली।
लेफ्टिनेंट बॉब को गिरा हुआ देख एक दूसरा अंग्रेज़ मंगल पांडे की ओर बढ़ा ही था कि मंगल पांडे के साथी भारतीय सैनिक ने अपनी बंदूक डंडे की भाँति उस अंग्रेज़ की खोपड़ी पर दे मारी। अंग्रेज़ की खोपड़ी खुल गई। अपने आदमियों को गिरते हुए देख कर्नल व्हीलर मंगल पांडे की ओर बढ़ा; पर सभी क्रुद्ध भारतीय सिंह गर्जना कर उठे-
"खबरदार, जो कोई आगे बढ़ा! आज हम तुम्हारे अपवित्र हाथों को ब्राह्मण की पवित्र देह का स्पर्श नहीं करने देंगे।"
कर्नल व्हीलर जैसा आया था वैसा ही लौट गया। इस सारे कांड की सूचना अपने जनरल को देकर, अंग्रेज़ी सेना को बटोरकर ले आना उसने अपना धर्म समझा। जंग-ए-आज़ादी के पहले सेनानी मंगल पांडे ने 1857 में ऐसी चिंगारी भड़काई, जिससे दिल्ली से लेकर लंदन तक की ब्रिटिश हुकूमत हिल गई।
अंग्रेज़ी सेना द्वारा बंदी
वीर मंगल पांडे ने अपने कर्तव्य की पूर्ति कर दी थी। शत्रु के रक्त से भारत भूमि का तर्पण किया था। मातृभूमि की स्वाधीनता जैसे महत कार्य के लिए अपनी रक्तांजलि देना भी अपना पावन कर्तव्य समझा। मंगल पांडे ने अपनी बंदूक अपनी छाती से अड़ाकर गोली छोड़ दी। गोली छाती में सीधी न जाती हुई पसली की तरफ फिसल गई और घायल मंगल पांडे अंग्रेज़ी सेना द्वारा बंदी बना लिये गये। अंगेज़ों ने भरसक प्रयत्न किया कि वे मंगल पांडे से क्रांति योजना के विषय में उसके साथियों के नाम-पते पूछ सकें; पर वह मंगल पांडे थे, जिनका मुँह अपने साथियों को फँसाने के लिए खुला ही नहीं।